Sunday, April 20, 2025
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“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा”श्रीदेव सुमन जी

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Vijaya Dimri
Vijaya Dimrihttps://bit.ly/vijayadimri
Editor in Chief of Uttarakhand's popular Hindi news website "Voice of Devbhoomi" (voiceofdevbhoomi.com). Contact voiceofdevbhoomi@gmail.com

हर साल की भांति हम आज 25 जुलाई को अमर बलिदानी श्रीदेव सुमन जी का बलिदान दिवस मना रहे हैं । उत्तराखंड राज्य में 25 जुलाई का दिन ‘सुमन दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। ब्रिटिश हुकूमत और टिहरी की राजशाही के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे श्रीदेव सुमन को दिसंबर 1943 को टिहरी की जेल में नारकीय जीवन भोगने के लिए डाल दिया गया था। जहां 84 दिन की भूख हड़ताल के बाद वह शहीद हो गए।

संक्षिप्त परिचय

सुमन जी का जन्म 25 मई, 1916 को टिहरी जिले की बमुण्ड पट्टी के जौल गांव में श्रीमती तारा देवी की गोद में हुआ था, इनके पिता श्री हरिराम बडोनी क्षेत्र के प्रसिद्ध वैद्य थे। प्रारम्भिक शिक्षा चम्बा और मिडिल तक की शिक्षा उन्होंने टिहरी से हासिल की। संवेदनशील हृदय होने के कारण वे ‘सुमन’ उपनाम से कविताएं लिखते थे।

‘नमक सत्याग्रह’ में लिया भाग 

सन 1930 में 14 वर्ष की किशोरावस्था में उन्होंने ‘नमक सत्याग्रह’ में भाग लिया। थाने में बेतों से पिटाई कर उन्हें 15 दिन के लिये जेल भेज दिया गया और 15 जनवरी 1948 को टिहरी रियासत राजशाही से मुक्त हो गयी। उसके बाद उन्होंने टिहरी रियासत की सामंतशाही और राजशाही नीतियों के विरोध में आंदोलन प्रारंभ किया। 1940 में राजा की नीतियों का विरोध करने पर उन्हें फिर जेल भेजा गया। उनके खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज किये गये जिस पर सुमन ने ऐतिहासिक आमरण-अनशन शुरू कर दिया था। इतिहास के शायद सबसे लम्बे 84 दिनों के आमरण अनशन के बाद वे राजा की नीतियों का विरोध करते हुए 25 जुलाई 1944 को शहीद हो गये।

मैं अपने शरीर के कण-कण…..

लेकिन सुमन के बलिदान से उत्तराखंड की जनता में आंदोलन का ऐसा उन्माद उत्पन्न हुआ कि 15 जनवरी 1948 को टिहरी रियासत राजशाही से मुक्त हो गयी। श्रीदेव सुमन का कहना था कि “मैं अपने शरीर के कण-कण को नष्ट हो जाने दूंगा लेकिन टिहरी रियासत के नागरिक अधिकारों को कुचलने नहीं दूंगा।”  सुमन की इस बात पर राजा ने दरबार और प्रजामण्डल के बीच सम्मानजनक समझौता कराने का संधि प्रस्ताव भी भेजा, लेकिन राजा के दरबारियों ने उसे खारिज कर इनके पीछे पुलिस और गुप्तचर लगवा दिये।

चम्बा में किया गया गिरफ्तार

27 दिसम्बर, 1943 के दिन चम्बाखाल में सुमन को गिरफ्तार कर दिया गया और 30 दिसम्बर को टिहरी जेल भिजवा दिया गया। 30 दिसम्बर 1943 से 25 जुलाई 1944 तक 209 दिन सुमन ने टिहरी की जेल में बिताये। टिहरी जेल उस समय की सबसे नारकीय जेल थी। उस पर झूठे मुकदमे और फर्जी गवाहों के आधार पर 31 जनवरी, 1944 को दो साल का कारावास और 200 रुपया जुर्माना लगाकर इन्हें सजायाफ्ता मुजरिम बना दिया गया।

21 दिन का उपवास शुरू…

सुमन ने 29 फरवरी से 21 दिन का उपवास प्रारम्भ कर दिया, जिससे जेल के कर्मचारी कुछ झुके, लेकिन जब महाराजा से कोई बातचीत नहीं कराई गई तो इन्होंने उसकी मांग की, लेकिन बदले में बेंतों की सजा इन्हें मिली। किसी प्रकार का उत्तर न मिलने पर सुमन ने 3 मई, 1944 से इतिहास का सबसे कठिन और नारकीय आमरण अनशन शुरू कर दिया।

पागल साबित करने की हुई कोशिश

श्रीदेव सुमन पर कई प्रकार के अत्याचार किये गये। पागल साबित करने की कोशिश की गयी। मनोबल को डिगाने की कोशिश की गयी। मगर लेकिन वह हिमालय की तरह अड़िग रहे। रियासत ने यह झूठी अफवाह फैला दी कि श्रीदेव सुमन ने अनशन समाप्त कर दिया है और 4 अगस्त को महाराजा के जन्मदिन पर इन्हें रिहा कर दिया जाएगा। उधर अनशन से सुमन की हालत बिगड़ती चली गई और जेल के अत्याचार भी बढ़ते चले गए।

कुनैन के इंजेक्शन लगाये…

जेल के कर्मियों ने यह प्रचार करवा दिया कि सुमन को निमोनिया हो गया है, लेकिन इन्हें कुनैन के इंजेक्शन लगाए गए। जिससे इनके पूरे शरीर में पानी की कमी हो गयी। सुमन पानी मांगते तो उनसे लिखित तौर पर अपना अनशन वापस लेने को कहा जाता। सुमन ने पानी पीने से भी इनकार कर दिया।

25 जुलाई को दे दी प्राणों की आहुति

20 जुलाई की रात से सुमन को बेहोशी आने लगी और 25 जुलाई 1944 को शाम करीब 4 बजे यह अमर सेनानी ने अपनी मातृभूमि और आदर्शों के लिये अपने प्राणों की आहुति दे दी। जेल प्रशासन ने उनकी लाश एक कम्बल में लपेट कर भागीरथी और भिलंगना के संगम पर तेज धारा में फेंक दी।

राजशाही के खिलाफ खुला विद्रोह

इस शहादत का जनता पर जबरदस्त असर हुआ और राजशाही के खिलाफ खुला विद्रोह शुरू हो गया। जनता ने देवप्रयाग, कीर्ति नगर और टिहरी पर अधिकार कर लिया और यहाँ प्रजामण्डल के पहले मंत्रिपरिषद का गठन हुआ। जिसके बाद 1 अगस्त 1949 को टिहरी गढ़वाल रियासत का भारत गणराज्य में विलय हो गया।

इस बार सादगी से मनाया जाएगा सुमन दिवस

25 जुलाई को उनकी स्मृति में ‘सुमन दिवस’ मनाया जाता है। अब पुराना टिहरी शहर, जेल और काल कोठरी तो बांध में डूब गई है, पर नई टिहरी की जेल में वह हथकड़ी व बेड़ियां सुरक्षित हैं। हजारों लोग वहां जाकर उनके दर्शन कर उस अमर बलिदानी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के चलते जिला प्रशासन ने सुमन दिवस को बड़ी सादगी से मनाने के निर्देश दिए हैं। उनकी शहादत पर पुष्प अर्पित करने के साथ ही वृक्षारोपण आदि किया जाएगा। शत शत नमन।

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