Saturday, February 8, 2025
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तेरह प्रमुख नदियों की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के विमोचन

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Vijaya Dimri
Vijaya Dimrihttps://bit.ly/vijayadimri
Editor in Chief of Uttarakhand's popular Hindi news website "Voice of Devbhoomi" (voiceofdevbhoomi.com). Contact voiceofdevbhoomi@gmail.com

राष्ट्रीय वनीकरण एवं पर्यावरण विकास बोर्ड, (एमओईएफ और सीसी) द्वारा वित्त पोषित और भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, (भा.वा.अ.शि.प.) देहरादून द्वारा तैयार वानिकी अंतःक्षेपों के माध्यम से तेरह प्रमुख नदियों नामतः झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास, सतलुज, यमुना, ब्रह्मपुत्र, लूनी, नर्मदा, गोदावरी, महानदी, कृष्णा और कावेरी के कायाकल्प पर डीपीआर को श्री भूपेंद्र यादव, माननीय मंत्री, पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन, द्वारा आज नई दिल्ली में विमोचित किया गया।
इस अवसर पर श्री गजेंद्र सिंह शेखावत, माननीय मंत्री, जल शक्ति मंत्रालय; श्री अश्विनी कुमार चौबे, माननीय राज्य मंत्री, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय; श्रीमती लीना नंदन, सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय; श्री. सी.पी. गोयल, महानिदेशक वन एवं विशेष सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय; श्री अरुण सिंह रावत, महानिदेशक, (भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, देहरादून), श्री प्रेम कुमार झा, महानिरीक्षक, एनएईबी और श्री एस.डी. शर्मा, पीसीसीएफ एवं पूर्व उप. महानिदेशक (अनुसंधान), श्री आर.के. डोगरा, उपमहानिदेशक (अनुसंधान), भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद एवं भा.वा.अ.शि.प. के अधिकारी भी उपस्थित थे। इनके अतिरिक्त विभिन्न राज्य सरकारों के वरिष्ठ अधिकारी और भा.वा.अ.शि.प. संस्थानों के निदेशक टीम के सदस्यों के साथ वर्चुअल माध्यम से समारोह में शामिल हुए।


नदी पारिस्थितिक तंत्र के सिकुड़ने और क्षरण के कारण ताजे जल संसाधन घट रहे हैं और बढ़ता जल संकट पर्यावरण, संरक्षण, जलवायु परिवर्तन और सतत विकास से संबंधित राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक बड़ी बाधा बनता जा रहा है। तेरह नदियाँ सामूहिक रूप से 18,90,110 वर्ग किमी के कुल बेसिन क्षेत्र को आच्छादित करती हैं जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 57.45% का प्रतिनिधित्व करता है। परियोजना के अंतर्गत निरूपित नदी परिदृश्यों के भीतर २०२ सहायक नदियों सहित 13 नदियों की लंबाई 42,830 किमी है।
नदियों के साथ-साथ उनकी सहायक नदियों को प्राकृतिक भूदृश्य, कृषि भूदृश्य और शहरी भूदृश्य के तहत वानिकी अंतःक्षेपों के लिए प्रस्तावित किया गया है। काष्ठ की प्रजातियों, औषधीय पौधों, घास, झाड़ियों और ईंधन, चारे और फलों के पेड़ों सहित वानिकी वृक्षारोपण के विभिन्न मॉडलों का उद्देश्य पानी को बढ़ाना, भूजल पुनर्भरण और क्षरण को रोकना है। विभिन्न भूदृश्यों में प्रस्तावित वानिकी अंतःक्षेप और सहायक गतिविधियों के लिए बनाई गई सभी 13 डीपीआर में कुल 667 उपचार और वृक्षारोपण मॉडल प्रस्तावित हैं। प्राकृतिक भूदृश्य के लिए 283 उपचार मॉडल, कृषि भूदृश्य में 97 उपचार मॉडल और शहरी भूदृश्य में 116 उपचार मॉडल प्रस्तावित किए गए हैं। विभिन्न हितधारकों के साथ परामर्श के आधार पर जी.आई.एस. तकनीक द्वारा समर्थित नदी परिदृश्य में प्राथमिकता वाले स्थलों के उपचार के लिए मिट्टी और नमी संरक्षण और घास, जड़ी-बूटियों, वानिकी और बागवानी पेड़ों के रोपण के संदर्भ में स्थल विशिष्ट उपचार प्रस्तावित किए गए हैं। इस पूरी कवायद के दौरान संबंधित राज्य के वन विभागों के नोडल अधिकारी अन्य संबंधित विभागों के साथ समन्वय स्थापित करने के लिए जुड़े रहे।
प्रत्येक डीपीआर में निरूपित नदी परिदृश्य का विस्तृत भू-स्थानिक विश्लेषण, नदी पर्यावरण पर विस्तृत समीक्षा, वर्तमान स्थिति के लिए जिम्मेदार कारक और व्यापक परामर्श प्रक्रिया के आधार पर वानिकी अंतःक्षेप और अन्य संरक्षण उपाय प्रस्तावित किये गए जिसके लिए क्षेत्र सत्यापन के साथ सुदूर संवेदन और जीआईएस तकनीकों का उपयोग करके क्षेत्रों की प्राथमिकता तय की गयी और प्रत्येक निरूपित नदी परिदृश्य में प्राकृतिक, कृषि और शहरी भूदृश्यों के लिए विभिन्न उपचार मॉडल का निर्माण किया गया । प्रत्येक डीपीआर में वॉल्यूम I, II और सिंहावलोकन के रूप में डीपीआर का सारांश शामिल है। इसके अतिरिक्त, संक्षिप्त आलेख के रूप में सभी 13 डीपीआर का एक सिंहावलोकन भी तैयार किया गया है।
डीपीआर, वन संरक्षण, वनीकरण, जलग्रहण उपचार, पारिस्थितिक बहाली, नमी संरक्षण, आजीविका सुधार, आय सृजन, नदी के किनारों को विकसित करके पारि पर्यटन, इको-पार्कों पारिस्थितिकी पर्यटन और जनता के बीच जागरूकता बढ़ने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। अनुसंधान और जाँच को भी एक घटक के रूप में शामिल किया गया है।
तेरह डीपीआर का प्रस्तावित संचयी बजट परिव्यय रु. 19,342.62 करोड़ है। डीपीआर को राज्य वन विभागों को नोडल विभाग के रूप में कार्यान्वित किये जाने का प्रस्ताव है, राज्यों में अन्य संरेखित विभागों की योजनाओं के अभिसरण के साथ डीपीआर में प्रस्तावित गतिविधियों को भारत सरकार से वित्त पोषण सहायता के माध्यम से निष्पादित किए जाने की उम्मीद है। अग#पंक्ति कर्मचारियों द्वारा कार्यान्वयन में आसानी के लिए, राज्य वन विभागों द्वारा हिंदी / स्थानीय भाषाओं में एक निष्पादन नियमावली तैयार की जाएगी। भा.वा.अ.शि.प. द्वारा तकनीकी सहायता प्रदान की जाएगी। पांच साल की अवधि में वृक्षारोपण के पश्चात् रखरखाव के लिए अतिरिक्त समय के प्रावधान के साथ उपचार करने का प्रस्ताव है। परियोजना की शुरुआत में देरी के मामले में, डीपीआर के प्रस्तावित परिव्यय को थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) का उपयोग करके समायोजित किया जाएगा क्योंकि परियोजना परिव्यय की गणना 2019-20 के दौरान प्रचलित लागतों के अनुसार की गई थी। निष्पादन के दौरान, “रिज टू वैली विधि” का पालन किया जाएगा और वृक्षारोपण कार्यों से पहले मिट्टी और नमी संरक्षण कार्य किया जाएगा। कार्यान्वयन के समय की परिस्थितियों के अनुसार प्रजातियों और स्थलों के परिवर्तन के लिए लचीलापन प्रदान किया गया है। डीपीआर में राष्ट्रीय स्तर और राज्य स्तर पर संचालन और कार्यकारी समितियों का भी प्रस्ताव किया गया है।
डीपीआर में प्रस्तावित गतिविधियों से गैर-काष्ठवनोपज के उत्पादन के अलावा हरित आवरण को बढ़ाने, मिट्टी के कटाव, भूमि में जल पुनर्भरण और कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषण के संभावित लाभों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी। वानिकी अंतःक्षेप से 13 नदी परिदृश्यओँमें संचयी वन क्षेत्र में 7,417.36 वर्ग किमी की वृद्धि होने की उम्मीद है। प्रस्तावित अंतःक्षेप से 10 साल आयु के वृक्षारोपण में 50.21 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड और 20 साल आयु के वृक्षारोपण में 74.76 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने में मदद मिलेगी।तेरह नदी परिदृश्य में प्रस्तावित अंतःक्षेप से 1,889.89 मिलियन घन मीटर प्रति वर्ष भूजल पुनर्भरण में मदद मिलेगी, और मिटटी के अवसादन में 64,83,114 घन मीटर प्रति वर्ष की कमी आएगी। इसके अलावा अकाष्ठ और अन्य वन उपज से 449.01 करोड़ रुपये उत्पन्न होने की संभावना है। यह भी उम्मीद है कि 13 डीपीआर में प्रावधान के अनुसार नियोजित गतिविधियों के माध्यम से 344 मिलियन मानव-दिवस का रोजगार सृजित होगा।
ये प्रयास भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे जैसे कि एनडीसी वानिकी क्षेत्र का लक्ष्य, यूएनएफसीसीसी के पेरिस समझौते के तहत 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.5 -3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के एक अतिरिक्त-कार्बन सिंक के निर्माण का लक्ष्य, यूएनएफसीसीडी के तहत भूमि क्षरण तटस्थता लक्ष्य के रूप में 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर निम्नीकृत भूमि की बहाली, सीबीडी और सतत विकास लक्ष्यों के तहत 2030 तक जैव विविधता के नुकसान को रोकना।
यह ग्लासगो में नवंबर 2021 के दौरान कॉप -26 में पंचामृत प्रतिबद्धता की दिशा में देश की प्रगति को मजबूत करेगा, जिसमें भारत ने 2030 तक अपने अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को एक अरब टन कम करने, 2030 तक अक्षय ऊर्जा के साथ 50 प्रतिशत ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने, 2030 तक 500 गीगावाट की जीवाश्म ऊर्जा क्षमता प#प्त करने, 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करने और 2070 तक शून्य के बराबर शुद्ध कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने का वादा किया है।
13 प्रमुख भारतीय नदियों की डीपीआर में परिकल्पित प्रस्तावित वानिकी अंतःक्षेपों के समय पर और प्रभावी कार्यान्वयन से अविरल धारा, निर्मल धारा और स्वच्छ किनारा के संदर्भ में नदियों के कायाकल्प के अलावा स्थलीय और जलीय वनस्पतियों और जीवों तथा आजीविका के सुधार में महत्वपूर्ण योगदान की उम्मीद है।

 

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