Saturday, February 8, 2025
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एफआरआई में मनाया गया विश्व मरुस्थलीकरण व सूखा रोकथाम दिवस

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Vijaya Dimri
Vijaya Dimrihttps://bit.ly/vijayadimri
Editor in Chief of Uttarakhand's popular Hindi news website "Voice of Devbhoomi" (voiceofdevbhoomi.com). Contact voiceofdevbhoomi@gmail.com

वन अनुसंधान संस्थान में आयोजित विश्व मरुस्थलीकरण व सूखा रोकथाम दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित संस्थान निदेशक डॉ. रेनू सिंह, आईएफएस, निदेशक महोदया ने समारोह का उद्घाटन किया। उद्घाटन भाषण में निदेशक ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि यह दिन हमें यह भूमि क्षरण की रोकथाम की आवश्यकता पर कारगर उपायों के संबंध में विचार करने का अवसर प्रदान करता है। उनके अनुसार इस समस्या का समाधान मजबूत सामुदायिक भागीदारी और सभी स्तरों पर सहयोग के माध्यम से हो सकता है। विभिन्न रिपोर्टों का हवाला देते हुए डॉ सिंह ने कहा कि हमें सतर्क रहना चाहिए क्योंकि जलवायु परिवर्तन से दुनिया के कई संवेदनशील क्षेत्रों में सूखे का खतरा बढ़ गया है। उन्होंने यह भी व्यक्त किया कि सीमित और कीमती प्राकृतिक संसाधन के संरक्षण के लिए सभी को एक साथ आने की आवश्यकता है। सूखे को सीमित करने और भूमि के पुनरुद्धार के लिए हमें ईमानदारी से प्रयास करना होगा। उन्होंने पुनरुद्धार, क्षमता निर्माण, भूमि प्रबंधन में महिलाओं की भागीदारी, जोखिम मूल्यांकन और मानव जनित कारणों को कम करने में तेजी लाने पर जोर दिया।

श्री एन. बाला वैज्ञानिक जी ने वानिकीगत उपायों के माध्यम से मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने पर व्याख्यान दिया। उन्होंने विभिन्न प्रकार के भूमि क्षरण को कम करने के लिए वानिकीगत उपायों के विभिन्न तकनीकी पहलुओं पर चर्चा की। इस अवसर पर एफआरआई के तकनीकी कर्मचारियों के लिए “सूखे की समस्या और उसका समाधान” विषय पर एक निबंध प्रतियोगिता भी आयोजित की गई थी। प्रतियोगिता के विजेताओं क्रमशः श्री आशीष कुमार, दीपक कुमार, अमित सिंह बिष्ट और दिग्विजय राणा को इस अवसर पर निदेशक महोदया द्वारा प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया।

उक्त कार्यक्रम में डॉ. विजेंद्र पंवार, प्रमुख, वन पारिस्थितिकी एवं जलवायु परिवर्तन प्रभाग तथा एनविस समन्वयक, सभी प्रभागों के प्रमुख, डीन और रजिस्ट्रार एफआरआईडीयू, रजिस्ट्रार एफआरआई, संस्थान के अधिकारी / वैज्ञानिक और तकनीकी कर्मचारी आदि उपस्थित रहें। कार्यक्रम का अंत डॉ. पारुल भट्ट कोटियाल के धन्यवाद ज्ञापन द्वारा किया गया।

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