जोशीमठ (प्रदीप भण्डारी) :- भारत चीन सीमा पर सुदूरवर्ती गांव सूकी में प्राचीन काल से चल रही परम्पराओ को आज भी ग्रामीणों ने जीवित रखा हुआ है ,सुकी में 7 दिवसीय जीतू बगडवाल का समापन हो गया है ,समापन अवसर पर जीतू बगडवाल की टीम इस आयोजन के समापन पर बदरीनाथ धाम जाते है ,इस साल बदरीनाथ धाम कोरोना के चलते बदरीनाथ धाम नही जा सकते इसलिए भविष्य बदरी धाम गए,भोटिया संस्कृति के लोग बड़े शिद्दत से इस परंपरा को निभा रहे है ,एक तरफ नीती घाटी में दैवीय आपदा का दौर जारी है ,वही यहाँ के ग्रामीण अपने परम्पराओ और संस्कृति को नही भूलते है ,और प्राचीन काल से अपनी संस्कृति को बचाये हुए है ,पहाड़ो में पलायन के कारण अब धीरे धीरे गांव खाली होने को परन्तु आज भी कुछ गांव ऐसे है जो देव भूमि को बचाए हुए है ,पहाड़ो में दैवीय आस्थाओं का केंद्र रहा है।
बग्डवाल देवताओ को अवतरित कराया जाता है
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गढ़वाल रियासत की गमरी पट्टी के बगोड़ी गांव पर जीतू का आधिपत्य था। अपनी तांबे की खानों के साथ उसका कारोबार तिब्बत तक फैला हुआ था। एक बार जीतू अपनी बहिन सोबनी को लेने उसके ससुराल रैथल पहुंचता है। हालांकि जीतू मन ही मन अपनी प्रेयसी भरणा से मिलना चाहता था। कहा जाता है कि भरणा अलौकिक सौंदर्य की मालकिन थी। भरणा सोबनी की ननद थी। जीतू और भरणा के बीच एक अटूट प्रेम संबंध था या यूं कहें कि दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने थे। जीतू बांसुरी भी बहुत सुंदर बजाता थे। एक दिन वो रैथल के जंगल में जाकर बांसुरी बजाने लगते हैं। रैथल का जंगल खैट पर्वत में है, जिसके लिए कहा जाता है कि वहां परियां निवास करती हैं।
जीतू जब वहां बांसुरी बजाता है तो बांसुरी की मधुर लहरियों पर आछरियां यानी परियां खिंची चली आती है इस पूरी कथानक को पौराणिक वेशभूषा में नृत्य सहित अन्य माध्यम से दिखाया गया, प्रधान लक्षमण बुटोला का कहना है प्राचीनकाल से बड़े शिद्दत से इस पौराणिक धरोहरों को बचाये हुए है ,इसके संरक्षण के लिए कार्य किया जाना चाहिये ।