डा बृजेश सती
भारत की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा ,संस्कृति के संरक्षण जीवन दर्शन एवं मानवीय मूल्यों के संरक्षण में हमारे ऋषि-मुनियों साधु-संतों की उल्लेखनीय भूमिका रही है ।ऋषि मुनि साधु संत स्वंय वीतराग रहते हुए भी मानव कल्याण के लिए हमेशा तत्पर रहे हैं। संतो की प्रवृत्ति को सब के प्रति प्रेम व्यवहार , वाणी में संयम, दूसरों के हित चिंतन में अनुरक्त , प्रत्येक के साथ प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से समान व्यवहार रखने वाले निश्चल निर्मल व अनुकरणीय छवि के महा पुरूष ,समाज में सदैव उच्च स्थान प्राप्त करते हैं ।संत हमेशा मानव हित व जनकल्याण के लिए साधनारत रहे हैं । बदलते सामाजिक दौर में भी यह क्रम निरंतर जारी है।
संतो एवं ऋषि-मुनियों की स्थापित परंपरा का निर्वहन करने वाले आध्यात्मिक युग पुरुषों में एक नाम ज्योतिर्मठ एवं द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का भी है, जो वर्तमान में अध्यात्म के शिखर पुरुष हैं।
विगत 74 वर्षों से आप धर्म व आध्यात्मिक परंपरा तथा सनातन धर्म का प्रचार प्रसार कर रहे हैं। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का जन्म संवत 1980 के भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि (आंग्ल गणना अनुसार 2 सितंबर 1924 ईस्वी ) के दिन मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जनपद के दिघोरी गांव में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री धनपति उपाध्याय व माता का नाम गिरजा देवी था। कहते हैं अवतारी पुरुष के प्रादुर्भाव के साथ वहां का वातावरण भी उसी अनुसार हो जाता है । जन्म दाताओं को भी इसका पूरा बहुत हो जाता है कि उनके घर में अवतारी पुरुष ने जन्म लिया है यही कारण रहा कि आपका नाम पौथी राम रखा गया । पौथी का शाब्दिक अर्थ है शास्त्र को जानने वाला या शास्त्र का ज्ञाता।
आप नौ वर्ष की अल्पावस्था में ही सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर धार्मिक यात्राओं की ओर प्रवृत हुए। विभिन्न क्षेत्रों की धार्मिक यात्रा करने के बाद आपने गाजीपुर की रामपुर पाठशाला में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद काशी आकर ब्रह्मलीन धर्म सम्राट करपात्री महाराज एवं स्वामी महेश्वरानंद जी जैसे लब्ध प्रतिष्ठित विद्वानों से वेद वेदांग , शास्त्र एवं पौराणिक इतिहास तथा न्याय ग्रंथों का अध्ययन किया । बहुत कम समय में ही आप उच्च कोटि के विद्वानों की श्रेणी में शामिल हो गए। इसी दौरान देश की आजादी का आंदोलन में तेज हो रहा था । सन 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन आह्वान के साथ ही आप भी आजादी के आंदोलन का हिस्सा बन गए। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती क्रांतिकारी साधु के नाम से पहचाने जाने लगे। इस दौरान आपने मध्य प्रदेश व वाराणसी की जेलों में 9 और 6 माह तक जेल की सजा भोगी।
इस दौरान आपकी धार्मिक एवं आध्यात्मिक क्रियाकलाप निरंतर चलते रहे । वर्ष 1973 में आपके आध्यात्मिक जीवन में एक नया मोड़ तब आया, जब ज्योतिषपीठ के तत्कालीन आचार्य स्वामी कृष्ण बोध आश्रम जी महाराज का शरीर शांत हुआ तथा आपको आपकी विद्वता एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों को देखते हुए स्वामी स्वरुपानंद नंद सरस्वती जी को शंकराचार्य पद पर अभिषिक्त किया गया । तब से लेकर अद्यावधि तक आप ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य पद पर आसीन हैं। इस बीच सन 1982 में आपको द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य पद पर भी अभिषिक्त किया गया।
वर्तमान में आप ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य का पद पर विराजमान रहते हुए सनातन धर्म का प्रचार प्रसार कर रहे हैं । शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी ने केवल धर्म एवं अध्यात्म के क्षेत्र में ही कार्य नहीं किया बल्कि उन्होंने सामाजिक क्षेत्रों में भी उल्लेखनीय कार्य किया है। आपने देश के आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा स्वास्थ्य जैसी प्रतिष्ठानों की भी स्थापना की इसके अलावा देश के विभिन्न प्रांतों में संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार अध्ययन एवं अध्यापन के लिए संस्कृत विद्यालयों की भी स्थापना की।
राम जन्मभूमि आंदोलन में भी स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी की भूमिका अविस्मरणीय है। पूज्य स्वामी जी के पावन सानिध्य में राम जन्म भूमि सुधार समिति द्वारा देशभर में विरोध आंदोलन चलाया गया। इस आंदोलन के तहत स्वामी जी को गिरफ्तार भी होना पड़ा और चुनार जिले की अस्थाई जेल में 9 दिनों तक रखा गया । 30 नवंबर 2006 को अयोध्या में आपके नेतृत्व में हजारों श्रद्धालुओं ने राम जन्म भूमि की परिक्रमा की। देश के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली आपदाओं में भी आपने प्रभावित पीड़ित परिजनों को ज्योर्तिमठ एवं द्वारका शारदा पीठ की ओर से यथासंभव सहायता उपलब्ध कराई ।
97 वर्ष की आयु में भी आप अपनी साधना आध्यात्मिक पूंजी से समाज को अभिसिंचित कर रहे हैं । इसआआयु में भी ध्यात्मिक पराकाष्ठा की ऊंचाइयों को छू कर समाज को नैतिक एवं चारित्रिक रूप से पुष्पित एवं पल्लवित करने का संदेश देशभर में कर रहे।